गर्भकालीन मधुमेह (Gestational Diabetes Mellitus – GDM)

गर्भकालीन मधुमेह (Gestational Diabetes Mellitus – GDM) गर्भावस्था के दौरान होने वाला मधुमेह है, जो आमतौर पर डिलीवरी के बाद ठीक हो जाता है। यह तब होता है जब गर्भावस्था के दौरान शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता, जिससे रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) का स्तर बढ़ जाता है। यह समस्या उत्तर प्रदेश, विशेषकर बरेली और आस-पास के क्षेत्रों में भी तेजी से बढ़ रही है। सही समय पर पहचान और प्रबंधन से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

गर्भकालीन मधुमेह होने का खतरा किन महिलाओं को होता है?

उत्तर प्रदेश और बरेली जैसे क्षेत्रों में महिलाओं में निम्नलिखित कारणों से गर्भकालीन मधुमेह का खतरा अधिक हो सकता है:

• उम्र: 25 वर्ष से अधिक उम्र की गर्भवती महिलाओं में जोखिम अधिक होता है।

• पारिवारिक इतिहास: यदि परिवार में किसी को मधुमेह है तो यह जोखिम बढ़ सकता है।

• वजन: गर्भावस्था से पहले अधिक वजन या मोटापा।

• पहले का अनुभव: यदि पिछली गर्भावस्था में मधुमेह रहा हो या 4 किलो से अधिक वजन का बच्चा हुआ हो।

• जीवनशैली: शारीरिक गतिविधि की कमी और अस्वस्थ आहार।

लक्षण जिन पर ध्यान देना चाहिए

गर्भकालीन मधुमेह के लक्षण स्पष्ट नहीं होते हैं, लेकिन निम्न संकेतों पर ध्यान देना जरूरी है:

• अत्यधिक प्यास लगना।

• बार-बार पेशाब आना।

• थकान महसूस करना।

• धुंधला दिखाई देना।

इन लक्षणों को गर्भावस्था के सामान्य बदलावों के साथ भ्रमित करना आसान है, इसलिए नियमित जाँच करवाना महत्वपूर्ण है।

गर्भकालीन मधुमेह की जाँच कैसे होती है?

उत्तर प्रदेश में अधिकांश डॉक्टर गर्भावस्था के 24वें से 28वें सप्ताह के बीच इसकी जाँच करवाने की सलाह देते हैं।

• ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट (GCT): यह एक सरल टेस्ट है जिसमें ग्लूकोज पीने के बाद रक्त शर्करा की जांच की जाती है।

• ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (OGTT): यदि GCT का परिणाम असामान्य हो, तो यह टेस्ट किया जाता है।

गर्भकालीन मधुमेह के प्रभाव

यदि इसे अनदेखा किया गया, तो यह मां और बच्चे दोनों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है।

बच्चे के लिए:

• अत्यधिक वजन (Macrosomia): बड़े बच्चे के कारण डिलीवरी में कठिनाई।

• प्रिमेच्योर डिलीवरी: समय से पहले जन्म का खतरा।

• नवजात में लो ब्लड शुगर: डिलीवरी के बाद बच्चे में ब्लड शुगर की कमी।

• भविष्य में टाइप 2 मधुमेह का खतरा।

मां के लिए:

• प्री-एक्लेम्पसिया: उच्च रक्तचाप और अन्य जटिलताएं।

• सी-सेक्शन डिलीवरी: सामान्य प्रसव में कठिनाई।

• भविष्य में टाइप 2 मधुमेह का खतरा।

गर्भकालीन मधुमेह का प्रबंधन

1. स्वस्थ आहार:

• संपूर्ण आहार लें जिसमें साबुत अनाज, सब्जियां, प्रोटीन और स्वस्थ वसा शामिल हों।

• कार्बोहाइड्रेट को नियंत्रित करें।

• दिन भर में भोजन और स्नैक्स को समान रूप से बांटें।

2. शारीरिक गतिविधि:

• रोजाना हल्की गतिविधियां करें जैसे टहलना, योग या हल्का व्यायाम।

3. ब्लड शुगर की निगरानी:

• ब्लड शुगर की नियमित जाँच करें। डॉक्टर के बताए निर्देशों का पालन करें।

4. दवाइयां:

• यदि आहार और व्यायाम से ब्लड शुगर नियंत्रित न हो, तो डॉक्टर इंसुलिन या अन्य दवाइयां लिख सकते हैं।

डिलीवरी के बाद की देखभाल

• डिलीवरी के 6-12 सप्ताह बाद ब्लड शुगर की जांच कराएं।

• स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर भविष्य में मधुमेह से बचा जा सकता है।

• स्तनपान कराएं, यह मां और बच्चे दोनों के लिए फायदेमंद है।

गर्भकालीन मधुमेह से बचाव

• गर्भावस्था से पहले स्वस्थ वजन बनाए रखें।

• संतुलित आहार और नियमित व्यायाम करें।

• डॉक्टर से नियमित परामर्श लें।

बरेली और उत्तर प्रदेश की महिलाओं के लिए सुझाव

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स्वस्थ मां, स्वस्थ बच्चा का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सही जानकारी और समय पर उपचार सबसे महत्वपूर्ण है।

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